Jaunpur news रामपुर कला की चम्पा सिंह: बिना इंजेक्शन जिए 105 साल, संघर्ष और सादगी भरा रहा जीवन

रामपुर कला की चम्पा सिंह: बिना इंजेक्शन जिए 105 साल, संघर्ष और सादगी भरा रहा जीवन
जौनपुर। आधुनिक जीवनशैली और छोटी-छोटी परेशानियों से घबराने वाले दौर में मछलीशहर विकासखंड के रामपुर कला गांव की स्वर्गीय चम्पा सिंह एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गईं। करीब 105 वर्ष की आयु तक जीवित रहीं चम्पा सिंह ने अपने जीवन में संघर्ष, सादगी और आत्मनिर्भरता का अद्भुत उदाहरण पेश किया। रविवार को उनके निधन के बाद सोमवार को पूरे सम्मान और गाजे-बाजे के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
संघर्ष से भरा जीवन
चम्पा सिंह के बड़े बेटे राजेंद्र प्रसाद सिंह, जो सरस्वती विद्या मंदिर मछलीशहर से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं, बताते हैं कि वर्ष 1972 में उनके पिता जगत पाल सिंह के निधन के बाद जब छोटा भाई मात्र तीन महीने का था, तब मां पर दो बेटों और पांच बेटियों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी आ गई। खेती-बाड़ी के सहारे उन्होंने न सिर्फ परिवार संभाला बल्कि सातों बच्चों को शिक्षित और योग्य बनाया। आज बेटों ने एम.ए., एम.एड., एम.एससी., बी.एड. जैसी उच्च शिक्षाएं प्राप्त कीं और बेटियों की शादियां सम्मानपूर्वक संपन्न कीं।
गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणा
ग्रामीण जीवन में चम्पा सिंह को लोग ‘एक पाठशाला’ कहा करते थे। गांव की बहू-बेटियां उनसे बेना बनाना, जरई डालना, सरपत से मउनी या भउकी बनाना, देवी गीत और शादी-विवाह के गीत सीखती थीं। मजदूरों के प्रति उनका व्यवहार अनुकरणीय था — वे हमेशा कहतीं, “हमार घर तू सब बनउबा, तो हमहू तोहइस सब के अपने घरे खाना बनाई के खियउबई।”
स्वास्थ्य का रहस्य — सादा भोजन और अनुशासन
राजेंद्र सिंह बताते हैं कि माता जी को पूरे जीवन में इंजेक्शन कभी नहीं लगाना पड़ा। उन्हें न कभी शुगर हुई, न ब्लड प्रेशर। वे जीवन भर शाकाहारी भोजन लेती थीं। घर की दाल, बथुआ का साग, दूध और मट्ठा उनका पसंदीदा आहार था। मिठाई बनाना और परिवार को खिलाना उनका शौक था।
वे 52 वर्षों तक केवल सफेद साड़ी पहनती रहीं और बाहर के चटपटे खाने से दूर रहीं। आखिरी दिनों तक खुद दंत मंजन से मसूड़ों को रगड़तीं और नियमित दिनचर्या में रहतीं।
आस्था और आत्मशक्ति से पूर्ण जीवन
जीवन के अंतिम समय में वे घंटों राम नाम का जप करती थीं और बिना किसी कष्ट के गो लोकवासी हो गईं। उनके परिवार में आज बीस सदस्य हैं। सबसे बड़े नाती आशीष सिंह उद्योगपति होने के साथ-साथ समाजसेवा से भी जुड़े हैं।
राजेंद्र सिंह ने कहा कि जैसे माता जी ने बच्चों के लिए संघर्ष किया, वैसे ही उन्होंने भी माता जी की आखिरी दस वर्षों में सेवा को अपना कर्तव्य माना। वे कहते हैं — *“आज की पीढ़ी जो अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम छोड़ देती है या घर में उपेक्षित रखती