August 19, 2025

Jaunpur news पंद्रह अगस्त: तब और अब — हमजोलियों को समर्पित एक संस्मरण

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पंद्रह अगस्त: तब और अब — हमजोलियों को समर्पित एक संस्मरण

15 अगस्त नज़दीक है, और ऐसे में बचपन की यादें ताज़ा हो गईं। कक्षा 3 में दिया गया मेरा पहला और ऐतिहासिक भाषण आज भी ज़ेहन में ताज़ा है। पूरे स्कूल और मुख्य अतिथि के सामने बोलना था। पिताजी इतने उत्साहित थे कि उन्होंने मेरे लिए नई ड्रेस सिलवाई। उस समय न तो स्कूल से ड्रेस मिलती थी और न ही फीस माफ होती थी — हर महीने एक रुपए पच्चीस पैसे जमा करने पड़ते थे।

जैसा कि मध्यमवर्गीय परिवारों की परंपरा होती थी, कपड़े इतने ढीले और बड़े सिलवाए जाते थे कि तीन साल तक आराम से चल जाएं। मेरा नाम पुकारा गया, तो एक हाथ से हाफ पैंट संभालते हुए मैं मंच पर पहुंचा। भाषण देशभक्ति से भरा हुआ था। लेकिन जैसे ही जोश में दोनों हाथ ऊपर उठाकर श्रोताओं का उत्साह बढ़ाने की कोशिश की, हाफ पैंट ने कमर का साथ छोड़ दिया और धरती माता की गोद में जा गिरा। भीड़ के चेहरों पर जोश के साथ हल्की मुस्कान भी आ गई, और मेरा भाषण संयोग से सबसे मनोरंजक बन गया। गुरुजी ने पीठ थपथपाई और मैं उस स्कूल में ‘ऐतिहासिक वक्ता’ के नाम से मशहूर हो गया।

उस समय 15 अगस्त का रंग-रूप आज जैसा नहीं था। तिरंगे झंडे कागज पर हाथ से बनाए जाते थे, जिन्हें कॉपी की दफ्ती पर चिपकाकर बांस की कइनी में लगाया जाता था। केवल एक कपड़े का तिरंगा मानीटर के हाथ में होता था, और पूरी टोली अपने हाथ से रंगे तिरंगे के साथ प्रभात फेरी में शामिल होती थी।

आज के विपरीत, तब बाजार में झंडों की भरमार नहीं थी। अब तो मछलीशहर तहसील क्षेत्र के बाजार तिरंगों और सजावटी सामान से सजे रहते हैं। लेकिन तब 15 अगस्त की सुबह स्कूल में सबसे सुंदर तिरंगा किसने बनाया, यही देखने की होड़ रहती थी। मास्टर साहब यदि किसी बच्चे के तिरंगे को देखकर मुस्कुरा दें, तो समझिए उसकी कई दिनों की मेहनत सफल हो गई और वह दिनभर गर्व से फूला नहीं समाता था।


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