बीजेपी से विधानसभा जफराबाद के ब्राह्मण प्रत्याशी का नहीं हुआ चयन
बीजेपी से विधानसभा जफराबाद के ब्राह्मण प्रत्याशी का नहीं हुआ चयन
जौनपुर-उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में टिकट मांगने वाले नेताओं की होड़ सी लगी हुई है। वैसे तो ऐसा अक्सर सुनने और पढ़ने को मिल जाता है कि सभी पार्टियां किसी न किसी स्तर पर आंतरिक सर्वे के माध्यम से तथा पार्टी के कार्यकर्ताओं के माध्यम से यह जानने का प्रयास करती हैं कि उनका कौन सा प्रत्याशी किसी खास विधानसभा के दृष्टिकोण से सभी खाँचों में फिट बैठता है चाहे वह जातिगत खाँचे की बात हो या धार्मिक दृष्टिकोण या क्षेत्र में उस प्रत्याशी की वर्तमान छवि के दृष्टिकोण से। मिलाजुला कर यूं कहें कि जिताऊ प्रत्याशी कौन हो सकता है? इसकी खोज तो बहुत पहले ही शुरू हो जाती है किंतु प्रत्याशियों की सूची जारी होते समय पार्टियां अग्रसर पूर्व में किए गए सर्वे के इनपुट से परे जाकर धनबल, बाहुबल, पार्टी के किसी कद्दावर नेता का संरक्षण या पिछले चुनाव के परिणाम को दृष्टिगत रखते हुए प्रत्याशियों का चयन कर लेती हैं जिसका खामियाजा भी पार्टियों को प्रत्याशी की हार के रूप में चुकाना पड़ता है। यानी आम मतदाताओं की राय से इतर पार्टी के द्वारा कराए आंतरिक सर्वे को भी सिरे से नकार कर टिकट दे देना या दिलवा देना भीआज के समय में चुनाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो चुका है, खासकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो इसका भी अंतिम परिणामों पर अच्छा खासा असर दिखता है जो कि पार्टियों द्वारा चुनाव बाद कराए जाने वाली समीक्षा बैठक का मुख्य विषय भी बनता है। जहां तक जफराबाद विधानसभा की बात है अब तक बड़ी पार्टियों में केवल बसपा ने ही अपना पत्ता खोला है और संतोष मिश्रा के रूप में एक ब्राह्मण प्रत्याशी को मौका दिया है ।समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा में अभी मंथन का दौर चल रहा है।समर्थकों के साथ -साथ क्षेत्र की जनता में भी प्रत्याशियों को लेकर नित नए- नए नामों की चर्चा के साथ-साथ दावों- प्रतिदावों का दौर भी चल रहा है परंतु जफराबाद विधानसभा के जातिगत आंकड़ों की बात की जाए तो 2012 में बयालसी विधानसभा के कुछ गांवों को काटकर केराकत विधानसभा में सम्मिलित कर दिया गया और उनकी जगह कुछ नई ग्राम सभाओं को जफराबाद विधानसभा में सम्मिलित कर दिया गया,जिसमें से जातिगत दृष्टिकोण से कई ब्राह्मण बाहुल्य गांव भी हैं। परिणाम स्वरुप पूर्ववर्ती बयालसी विधानसभा की जगह नवीन सृजित जफराबाद विधानसभा के जातिगत मतदाताओं की संख्या में भी बड़ा बदलाव आया ,खासकर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी के दृष्टिकोण से जिसे बसपा और सपा जैसी पार्टियों ने तो स्वीकार करते हुए विगत चुनाव में ब्राह्मण प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया किंतु भारतीय जनता पार्टी ने इस विधानसभा के पिछले 50 वर्षों के इतिहास में एक भी ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा जबकि भाजपा ने संगठनात्मक दृष्टिकोण से जौनपुर को दो भागों मछली शहर और जौनपुर में बांटा है और मछली शहर जिले में केवल 2 सीटें ही सामान्य प्रत्याशियों के लिए हैं, उसमें से भी मड़ियाहूं सीट ज्यादातर सहयोगी दलों के खाते में ही जाती रही है। अब केवल जफराबाद सीट ही बचती है जहां से पार्टी सामान्य प्रत्याशी को मौका दे सकती है जिससे पार्टी के लिए जफराबाद सीट के लिए प्रत्याशी तय करना काफी दुरुह हो सकता है क्योंकि मोदी लहर के नाम पर 25 वर्षों के बाद बीजेपी को 2017 में सफलता अवश्य मिल गई किंतु लगातार दो चुनाव भाजपा के ही सिंबल पर हार चुके वर्तमान विधायक डॉक्टर हरेंद्र प्रताप सिंह के पिछले 5 वर्षों के कार्यकाल की समीक्षा के साथ ही ब्राह्मण मतदाताओं की आकांक्षाओं के अनुरूप जो कि मोदी/ योगी एवं राष्ट्रवाद के नाम पर भले ही भाजपा के साथ खड़े दिखते हों और वर्तमान विधायक की जातीय छवि एवं उनकी कार्यशैली से भाजपा से दूर भले ही न हुआ हो किंतु बातचीत के दौरान कहीं न कहीं दबी जुबान से ही सही ब्राह्मण मतदाता पिछले 50 सालों में एक भी ब्राह्मण को मौका न मिलने की व्यथा जरूर व्यक्त करते रहे हैं और व्यथित भी क्यों न हों ।पार्टी के समर्पित मतदाता होते हुए भी 50 वर्षों में भाजपा द्वारा एक भी ब्राह्मण प्रत्याशी न उतारना किसी भी जाति के मतदाताओं को खासकर वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जहां उत्तर प्रदेश में जाति का फैक्टर सबसे महत्वपूर्ण कारक हो चुका हो इनकी व्यथा स्वाभाविक भी हो जाती है। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए भाजपा के लिए जफराबाद सीट के लिए प्रत्याशी का चयन आसान नहीं होगा और पार्टी बाकी प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों में ब्राह्मणों के बोलबाला को देखते हुए अगर किसी ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।