Jaunpur news सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें परमात्मा बाल रूप में रोते हैं: स्वामी नारायणानंद तीर्थ

सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें परमात्मा बाल रूप में रोते हैं: स्वामी नारायणानंद तीर्थ
मछलीशहर। विकास खंड के ग्राम बामी में चल रही रामकथा के चौथे दिन बुधवार की शाम अनंत श्री विभूषित काशी धर्म पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी महाराज ने कहा कि दुनिया के सभी मतों में सनातन ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें स्वयं परमात्मा भक्तों के सुख हेतु बाल रूप में प्रकट होकर रो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि माता कौशल्या ने भगवान से बाल रूप में शिशु लीला का सुख मांगा था, इसलिए प्रभु उनके पुत्र बने। भक्त की भावना के अनुसार ही भगवान कभी पुत्र, कभी भाई, कभी पति और कभी शिष्य के रूप में प्रकट होते हैं। अन्य मतों में ईश्वर निराकार हैं, किंतु सनातन धर्म में भगवान भक्त की कामना के अनुरूप हर रूप में मिलते हैं।
स्वामी नारायणानंद तीर्थ जी ने कहा कि “यह मेरा है और यह तेरा है” — यही भटकाव है। आत्मज्ञान से यह भ्रम स्वतः मिट जाता है। वेद-वाक्य इस ज्ञान के साधन हैं और गुरु उसका माध्यम। जैसे एक ही मिठास से नाना रंग की मिठाइयाँ बनती हैं और बालक उन्हें भिन्न-भिन्न मानते हैं, वैसे ही अज्ञानता के कारण मनुष्य भगवान के विभिन्न रूपों को अलग-अलग समझता है।
उन्होंने कहा कि जैसे सोने के अलग-अलग आभूषणों में मूल तत्व सोना ही रहता है, वैसे ही सभी जीवों में मूल तत्व ब्रह्म ही है। माया से परे जाकर यही सत्य समझना आवश्यक है।
कथा के समापन पर महाराज जी की आरती हुई, जिसमें बामी सहित आसपास के अनेक गांवों के भक्तों ने भाग लिया।
