September 23, 2025

Jaunpur news मिट्टी-पत्तल से जुड़ी परंपरा और स्वास्थ्य: अनदेखी का नुक़सान

Share


मिट्टी-पत्तल से जुड़ी परंपरा और स्वास्थ्य: अनदेखी का नुक़सान

मछलीशहर, जौनपुर।
Jaunpur news कभी हमारी संस्कृति की पहचान रहे दोना-पत्तल आज बाजार से लगभग गायब हो गए हैं। थर्माकोल और प्लास्टिक के सस्ते विकल्पों ने न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि हमारी पारंपरिक जीवनशैली को भी हाशिये पर ढकेल दिया है।

शनिवार की रात मछलीशहर क्षेत्र के एक गांव में आयोजित एक जन्मदिन समारोह ने इस ओर सकारात्मक संदेश दिया। इस पार्टी में बच्चों को मिट्टी और पत्तल के बने बर्तनों में भारतीय व्यंजन परोसे गए। आयोजक के अनुसार, “यह बच्चों के लिए अनोखा अनुभव था। अधिकतर बच्चों ने पहली बार मिट्टी व पत्तल के बर्तनों में भोजन किया। हमारा उद्देश्य सिर्फ इतना था कि नई पीढ़ी अपनी परंपराओं से परिचित हो। अपनाना या नहीं अपनाना उनकी मर्जी है, लेकिन जानकारी देना हमारी जिम्मेदारी है।”

पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह प्रयास सराहनीय है। महुए और पलाश की पत्तियों से बने दोना-पत्तल पूरी तरह से इको-फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल होते हैं। इन्हें उपयोग के बाद मिट्टी में मिलाकर जैविक खाद में बदला जा सकता है। इससे न केवल हानिकारक केमिकल से बचाव होता है, बल्कि ग्रामीणों को रोजगार भी मिलता है और वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलता है।

वहीं दूसरी ओर, थर्माकोल और प्लास्टिक के बर्तनों में भोजन करना स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इन पर लगाई जाने वाली सिल्वर कोटिंग में इस्तेमाल केमिकल आंतों में सूजन, त्वचा संबंधी रोग और लंबे समय में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने चीनी और नमक में पाए जा रहे माइक्रोप्लास्टिक को लेकर सख्त रुख अपनाया है। मीडिया रिपोर्टों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए NGT ने पर्यावरण मंत्रालय से दो सप्ताह में परीक्षण प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी मांगी है।

यह स्थिति चेतावनी देती है कि यदि हम आज भी नहीं चेते तो हमारी परंपराएं, पर्यावरण और स्वास्थ्य – तीनों ही संकट में पड़ सकते हैं।


About Author