व्योम की दादी ने उसकी बरामदगी के लिए दर्ज कराई जीरो एफआईआर

व्योम की दादी ने उसकी बरामदगी के लिए दर्ज कराई जीरो एफआईआर
आज है अतुल की तेरहवीं, कामकाज से खाली होकर विकास लगाएगा पता
जौनपुर -हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट
मृत इंजीनियर अतुल के 4 वर्षीय पुत्र व्योम की बरामदगी को लेकर उसकी दादी अंजु मोदी ने बिहार, समस्तीपुर के वैनी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज कराया है।यह जानकारी अतुल के पिता पवन ने जागरण को दी। तहरीर में लिखा गया है कि उनके बेटे अतुल ने पत्नी व ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर 9 दिसंबर को बेंगलुरु में आत्महत्या कर लिया। घटना के बाद अतुल के भाई विकास ने बेंगलुरु के मराठाहल्ली थाने में निकिता,निशा,अनुराग व सुशील के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराया। पुलिस ने निकिता,निशा व अनुराग को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है लेकिन निकिता के साथ रह रहे अतुल के 4 वर्ष के पुत्र व्योम के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। आशंका है कि व्योम के साथ कोई अनहोनी हो सकती है।बच्चे की शीघ्र बरामदगी की जाए तथा उसे हम लोगों के संरक्षण में दिया जाए। पुलिस ने अंजू की तहरीर पर जीरो प्राथमिकी दर्ज किया है इस मामले में अग्रिम कार्रवाई की जा रही है। अतुल के पिता ने बताया की बेटा विकास ही अतुल का सारा क्रिया कर्म किया है। शनिवार को अतुल की तेरहवीं है। कामकाज से खाली होकर विकास दिल्ली व बेंगलुरु जाएगा और पुलिस से वार्ता कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। कहा कि पोते के लिए बहुत परेशान हूं। व्योम के संबंध में पुलिस कुछ और कह रही है सुशील कुछ और कह रहा है।तीन तरह की कहानी सामने आ रही है।पुलिस अगर निकिता से कड़ाई से पूछताछ करे तो 1 घंटे में पता चल सकता है कि पोता व्योम कहां है।
क्या होती है जीरो एफआईआर
जौनपुर -भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 में जीरो एफआईआर का प्राविधान है।आमतौर पर एफआईआर उसी थाना क्षेत्र में दर्ज कराई जाती है जिस थाने के क्षेत्राधिकार में घटना घटती है लेकिन जीरो एफआईआर किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है।पीड़ितों को शिकायत दर्ज करने के लिए इधर-उधर भागना नहीं पड़ता। वह जहां पर भी है वहीं संबंधित थाने पर फिर दर्ज कर सकता है।अधिकार क्षेत्र का हवाला देकर पीड़ितों को वापस नहीं लौटाया जा सकता। पुलिस इसे दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। एफआईआर में अपराध संख्या को जीरो नंबर दिया जाता है।बाद में इसे संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दिया जाता है।इसमें पीड़ित को तुरंत राहत मिलती है। पुलिस को एक्शन लेना ही पड़ता है।भले ही मामला उसके क्षेत्राधिकार में न हो।