छात्र, आम नागरिक, राहगीर और किसान के लिए मुसीबत बन रहे छुट्टा पशु
योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही गौ माता और बछड़े को बूचड़खाने में जाने से बचाने के लिए पूरे प्रदेश में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया। इसके लिए उन्होंने प्रदेश के हर जिले के प्रत्येक विकासखंड क्षेत्र में गांव स्तर पर गौशाला की स्थापना और चारे पानी के प्रबंध के बारे में गंभीरता दिखाई। भौतिकता की दौड़ में अंधा स्वार्थी मनुष्य गाय का दोहन करने के पश्चात बछड़े सहित घर से खदेड़ दिया। जिस गौ माता की महिमा पुराणों में वर्णित है और किसी भी शुभ कार्य या पूजा पाठ में गाय का दूध का प्रयोग किया जाता है। ऐसी पवित्र गौ माता अब इधर-उधर आवारा और लावारिस पशु की तरह अपने उदर की शांति के लिए और प्यास से व्याकुल दर-दर भटकती फिर रही हैं। आधुनिकता के दौर में इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि बढ़ती जनसंख्या और आवश्यकता के कारण उपभोग सामग्री में कमी और उपभोक्ताओं में वृद्धि हो गई है जिसका दुष्परिणाम गौ माता को भुगतना पड़ रहा है।
पहले इंसान गाय से उत्पन्न गोबर का उपयोग भोजन बनाने के लिए उपली, खेतों में गोबर की खाद और कंपोस्ट खाद के रूप में करता था।इतना ही नहीं गोबर गैस संयंत्र में भी गोबर का इस्तेमाल होता था और बाद में उससे निकले अपशिष्ट पदार्थ से खाद तैयार होती थी और जिसका प्रयोग खेतों में करता था।इससे कोई साइड इफेक्ट नहीं पड़ता था। अनाज के अधिक उत्पादन की होड़ में तमाम कीटनाशकों और रसायनों तथा भारी मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग ने अनगिनत मानसिक और शारीरिक बीमारियों को जन्म दिया। इसका दुष्प्रभाव आने वाली पीढियां पर भी पड़ने लगा। सरकार ने गौ संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं इसमें कोई शक नहीं किंतु इससे और नई समस्याएं उत्पन्न हो गईं जैसे इंसान की मानसिकता को इस प्रकार से बदला जाए कि वह गाय का दूध दुहने के बाद जब वह दूध देने में सक्षम नहीं रहती तो भी न छोड़े। तमाम समाजसेवियों और स्वयंसेवी संगठनों ने भी अपने स्तर से चंदा जुटाया और पुआल- भूसा एकत्रित करके गौशाला तक पहुंचाया जो अत्यंत सराहनीय कार्य है किंतु इतने से ही हमेशा के लिए समस्या का समाधान होना संभव नहीं है।
सोशल मीडिया पर तथा प्रमुख समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भूख प्यास से मर रही गौ माता और उन्हें नोच नोच कर खाते चील कौवे वाली खबरें तथा वीडियो भी वायरल हुई जिससे सरकार प्रशासन और आम जनता की संवेदनहीनता भी उजागर हुई। सरकार को भी इस बात पर विचार करना होगा कि चारे और पशु आहार का प्रति पशु का औसत क्या प्रत्येक पशु के लिए पर्याप्त है यदि नहीं है तो इससे जानवर कुपोषण के शिकार होंगे कि नहीं और भूख प्यास से दम तोड़ेंगे कि नहीं?जितने अधिक ऐशो- आराम की चाह इंसान में बढ़ी इसके बदले में उसने साथ-साथ अनेकों बीमारियों को भी मोल ले लिया। बीमारियों की वृद्धि ने इंसान के औसत जीवन काल को भी कम कर दिया जिसका नतीजा रहा कि हमारे पूर्वज 100 वर्ष से अधिक आयु तक जीवित रहते थे लेकिन आज तमाम बीमारियों के कारण अल्पायु में ही रोग ग्रस्त होकर अपना जीवन हार जा रहे हैं। छुट्टा पशुओं को पकड़ने के लिए सरकार ने कैटल कैचर का भी प्रबंध किया किंतु वह भी काफी हद तक सार्थक और कारगर नहीं साबित हुआ। स्कूली छात्र, आम राहगीर और किसान पर इधर-उधर घूम रहे इन जानवरों से इन तीनों के अस्तित्व को बचाने लिए समस्या उत्पन्न हो गई है। स्कूली बच्चों और आम राहगीर सड़क पर पूरी तरह से अतिक्रमण कर रहे इन पशुओं की वजह से कितनी दुर्घटनाएं हो रही हैं इसका भी कोई ठोस उपाय होना चाहिए ।सरकार- प्रशासन और हर नागरिक के सामने यह समस्या और सवाल जस का तस बना हुआ है।इस पर कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाए गए हैं।
रामनरेश प्रजापति पत्रकार सुइथाकला जौनपुर