September 20, 2024

समोधपुर गुड़िया का ताल: नाग पंचमी के त्यौहार के लिए आस्था का केंद्र

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शाहगंज। नाग पंचमी भारतीय सनातन धर्म परंपरा से जुड़ा हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह त्यौहार सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है और कहीं-कहीं सांपों को दूध पिलाने की भी परंपरा प्रचलित है। ऐसी ही परंपराओं को अपने आप में समेटे हुए है सुईथाकला विकासखंड क्षेत्र अंतर्गत समोधपुर गांव में स्थित गुड़िया का ताल। नाग पंचमी के त्यौहार के दिन इस तालाब में गुड़िया का विसर्जन रीति रिवाज के अनुसार किया जाता है। यहां महिलाएं, कुंवारी कन्याएं भारी संख्या में विशेष पूजा अर्चना करती हैं।यह धार्मिक स्थल आस्था एवं श्रद्धा भक्ति का प्रमुख केंद्र है।

ऐसा माना जाता है कि दो दशक पहले समाजसेवी स्वर्गीय रंग बहादुर सिंह दंगल का आयोजन करवाते थे जहां दूर-दूर से नवयुवक कबड्डी, कुश्ती ,ऊंची कूद, लंबी कूद आदि खेलों में हिस्सा लेते थे।अब धीरे-धीरे वह प्रथा और परंपरा विलुप्त सी प्रतीत हो रही है।ग्राम प्रधान प्रतिनिधि तथा समाजसेवी संजय सिंह का कहना है पूज्य पिताजी की दंगल आयोजित करने की जो सोच थी उनकी पहल को और आगे सकारात्मक दिशा दी जाएगी। उन्होंने कहा कि पिताजी की सोच थी कि युवाओं में बौद्धिक, शारीरिक, धार्मिक, आध्यात्मिक भावना का विकास हो। खेलकूद के माध्यम से युवाओं की शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है। जब हमारी काया निरोग रहेगी तभी हमारी हमारा मन मस्तिष्क स्वस्थ रहेगा। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। उन्होंने बताया कि आगामी नाग पंचमी के त्योहार से एक खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित होगी जिसमें सुदूर क्षेत्रों के खिलाड़ियों की टीमें प्रतिभाग करेंगी और उनके उत्साहवर्धन के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि इस तालाब का सुंदरीकरण करवा कर इसे भव्य रूप दिया जाएगा । राकेश सिंह सोमवंशी का विचार है कि ऐसे त्योहारों का वैज्ञानिक और सामाजिक सरोकार जुड़ा होता है। नाग पंचमी के दिन युवाओं बुजुर्गों और यहां तक की हर उम्र के लोगों के मन में एक विशेष उत्साह- उमंग और उल्लास होता था जो कहीं ना कहीं किसी न किसी प्रकार से विलुप्त होता दिखाई दे रहा है। ऐसी परंपराएं जो हमारी सनातन परंपरा और हिंदू धर्म की संस्कृति- सभ्यता का अंग हुआ करती थी लेकिन आज उनका प्रचलन कम होता जा रहा है इसके पीछे वह इंसान की भौतिकता वादी विचारधारा को मानते हैं। उन्होंने कहा कि शहरीकरण और नौकरी के लिए युवाओं का शहरों की तरफ पलायन करना भी प्रमुख कारण है।श्री सिंह ने रीति रिवाज और सामाजिक ताने-बाने को सामाजिक सद्भाव ,आपसी प्रेम और भाईचारा की भावना से युक्त होकर ऐसे त्योहारों को मनाने और उनमें रुचि लेने की बात कहीं।

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