November 12, 2025

Jaunpur news ग्रामीण परंपरा में आज भी जीवंत है सामूहिकता की मिसाल — ‘पाहुर’ बांटने की अनोखी रस्म

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ग्रामीण परंपरा में आज भी जीवंत है सामूहिकता की मिसाल — ‘पाहुर’ बांटने की अनोखी रस्म

जौनपुर।
तेजी से बदलते दौर में जहां रिश्ते और खुशियां अक्सर सोशल मीडिया तक सीमित हो गई हैं, वहीं जौनपुर के ग्रामीण इलाकों में आज भी “पाहुर” या “बायना” जैसी परंपराएं सामूहिकता और आपसी जुड़ाव की अलख जगा रही हैं।

शादी-ब्याह के मौसम में गांवों की गलियों में यह दृश्य आम है कि नाउन या कहाइन सिर पर दउरी (टोकरी) रखे मिठाइयों से भरी थाली लेकर एक-एक घर में पाहुर बांटती फिरती हैं। इसमें लड्डू, खाजा, बताशा, मीठी पूड़ी या खोये-छेने की मिठाइयां होती हैं — जो मांगलिक अवसर की खुशियों का प्रतीक बन जाती हैं।

कृषि प्रधान ग्रामीण समाज में पाहुर सिर्फ मिठाई बांटने की परंपरा नहीं, बल्कि रिश्तों को निभाने और साझा खुशी का प्रतीक है। शहरों में जहां इस रस्म का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है, वहीं गांवों में आज भी बिना पाहुर बांटे कोई शुभ कार्य अधूरा माना जाता है।

मछलीशहर विकासखंड के बामी गांव में शनिवार की शाम का नजारा इसका उदाहरण था। जैसे ही कहाइन सुनीता गौड़ मिठाइयों की दउरी लेकर घर में पहुंचीं, बच्चे खिलखिलाते हुए दौड़ पड़े और पूछने लगे — “किसके घर से पाहुर आया है?” सुनीता मुस्कुराते हुए बताती हैं, “पाहुर देने वाला भी कुछ न कुछ भेट देता है, और जिसके घर जाती हूं वहां से भी अनाज या उपहार मिल जाता है। यही तो इस रस्म की खूबसूरती है।”

पाहुर की यह प्रथा सिर्फ मिठास नहीं बढ़ाती, बल्कि संवाद, अपनापन और सामाजिक जुड़ाव को भी मजबूत करती है। यह एक ऐसी परंपरा है जो रिश्तों को महसूस करने का मौका देती है — जिसे न तो फेसबुक पोस्ट से व्यक्त किया जा सकता है और न ही बैंक खाते में इसकी कीमत आंकी जा सकती है।

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