September 21, 2024

फसल कटाई के उपरान्त पराली व फसल अवशेष को न जलाये किसान भाई’’

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    जौनपुर वर्तमान में खरीफ फसलो की कटाई के बाद, जो फसल अवशेष बचता है किसान उसे खेत में ही जला देते है, फलस्वरूप भूमि की ऊपरी सतह जल जाती है, उससे लाभदायक जीवाणु समाप्त होने के साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। फसल अवशेष जलाने से तमाम बस्तियों, खेतो, जंगलो आदि स्थानों पर आग लगने की तमाम दुर्घटनाये होती रहती है। इस गम्भीर समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन0जी0टी0) नें खेतो में फसल अवशेष जलाने वालो पर दण्डात्मक कानून बना दिया है।
           फसल अवशेष जलाने पर जहॉ रू0 ढाई हजार से लेकर रू0 पन्द्रह हजार तक जुर्माने की राशि तय की गई है, वही दोबारा खेत में फसल अवशेष जलाते हुये पकड़े जाने वाले कृषकों को कृषि विभाग से मिलने वाले अनुदानो से भी वंचित कर दिया जायेगा।
           उप कृषि निदेशक हिमांशु पाण्डेय ने किसानों को सुझाव दिया है कि खरीफ फसलों की कटाई स्ट्रॉं रीपर सहित हार्वेस्टर/सुपर स्ट्रॉं मैनेजमेन्ट सिस्टम के कम्बाइंड हार्वेस्टर से ही कराये। यह यंत्र फसल अवशेष का भूसा बना देगी इससे पशुओं के लिये चारा भी मिल जायेगा, वहीं दूसरी सबसे बड़ी समस्या खेत में आग लगाने से भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है और मिट्टी के अन्दर स्थित मित्र कीटो की मृत्यु हो जाती है, इससे मृदा का संतुलन भी बिगड़ जाता है, इससे भी निजात मिलेगी।
           उन्होंने बताया गया कि बगैर स्ट्रा रीपर के हार्वेस्टर मशीन से कटाई पर भी रोक लगाई गई है। जो भी हार्वेस्टर मशीन धारक बिना स्ट्रा रीपर के कटाई करते हुए पाये गये तो उनकी मशीन जब्त कर कानूनी कार्यवाही की जायेगी। उनके द्वारा बताया गया कि फसल अवशेष न जलाने से मृदा में कार्बनिक पदार्थो की वृद्धि होती है, लाभकारी सूक्ष्म जीवो की संख्या बढ़ती है। मृदा के जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है, दलहनी फसलो के अवशेष से मृदा मे नाइट्रोजन एवं अन्य पोषक तत्वो की मात्रा बढती है, वही खेतो में फसल अवशेष जलाने से किसानो एवं पर्यावरण दोनो को क्षति होती है, मिट्टी में स्थित पोषक तत्व नष्ट हो जाते है, वही मिट्टी के अन्दर पल रहे केचुआ व अन्य मित्र कीटो की भी असमय मौत हो जाती है। केचुआ मिट्टी को भुरभुरा बनाकर मृदा को उर्वरा बनाने का कार्य करता है। अतः मृदा जीवन का आधार है, इसे बचाये और फसल अवशेष न जलाये।

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