September 19, 2024

उमानाथ सिंह मेडिकल कॉलेज में मना ओआरएस सप्ताह

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जौनपुर। हर वर्ष जुलाई का आखिरी सप्ताह (25 से 31 जुलाई तक) ओआरएस सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसके चलते उमानाथ सिंह मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग की ओर से “ओआरएस: दस्त के लिए एकमात्र तर्कसंगत समाधान ” विषय पर गुरुवार को एक कार्यशाला हुई । कार्यक्रम की शुरुआत प्रधानाचार्य प्रो. शिव कुमार ने की। उन्होंने कहा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण डायरिया है। इसके बचाव में ओआरएस का घोल उपयोगी है। इस मौके पर सीएमएस डॉ एए जाफ़री ने ओआरएस के जनक भारतीय मूल के डा दिलीप महालनोबिस को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने बताया कि 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद जब 10 लाख शरणार्थी भारत में आ गए तो डा दिलीप महालनोबिस ने चीनी, मीठा सोडा और नमक से एक घोल तैयार कर डायरिया के रोगियों को दिया। इससे डायरिया/कालरा से होने वाली मौतों में कमी आई। उन्होंने बताया कि बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1978 में ओआरएस का प्रयोग करना शुरू किया। इसे वैश्विक स्तर पर डायरिया से बचाव के लिए अभियान के तौर पर शुरू किया गया। डॉ जाफ़री ने ओआरएस के फ़ायदों के बारे में जन-जागरूकता फैलाने पर विशेष जोर दिया।
बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एकांश राठौरिया ने दस्त के दौरान निर्जलीकरण की गंभीरता के अनुसार प्रबंधन के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि निर्जलीकरण के प्रबंधन के लिए ओआरएस और जिंक की गोली का उपयोगी साबित होती है। बच्चे को ओआरएस उतना ही देना चाहिए जितना वह चाहता हो। उसे छोटे-छोटे घूंट में ओआरएस देना चाहिए। ओआरएस नहीं रहने पर आपातकाल में एक लीटर साफ पानी में छह चम्मच चीनी और आधा चम्मच नमक मिलाकर घर पर ही ओआरएस तैयार कर दिया जा सकता है। ओआरएस और जिंक की गोली सभी सरकारी संस्थानों में मुफ़्त उपलब्ध है। दस्त होने पर छह माह से कम उम्र के बच्चे में 20 मिलीग्राम जिंक की आधी गोली और छह माह से ऊपर उम्र के बच्चे में 20 मिलीग्राम कि पूरी गोली 14 दिनों तक देना अति आवश्यक है।
डॉ ममता ने बताया 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में मुख्य रूप से वायरस जिम्मेदार होते हैं, जिनमें ज्यादातर छोटे बच्चों में रोटावायरस जिम्मेदार होता है। उन्होंने संकेतों और लक्षणों को समझने का तरीका बताया। उन्होंने निर्जलीकरण पहचानने का तरीका बताया। उन्होंने कहा कि दस्त के दौरान चेतना के स्तर में बदलाव, अत्यधिक उल्टी होना, भोजन स्वीकार न करना, आंखों और मुंह का ज्यादा सूखापन, त्वचा का ढीला पड़़ना और पेशाब कम होना खतरे के लक्षण हैं। डॉ. अरविन्द यादव ने ओआरएस के बारे में विस्तार से बताया, उन्होंने इसे पानी वाले दस्त के इलाज में सबसे प्रभावशाली बताया। उन्होंने कहा कि समय पर ओआरएस देने से लोगों की जान बचाई जा सकती है। उन्होंने ओआरएस घोल तैयार करने का सही तरीका बतलाया। उन्होंने कहा घर पर बनी लस्सी, छांछ, नारियल पानी, चावल का पानी, नमक के साथ ताजा जूस दिया जा सकता है लेकिन पैक्ड जूस, कोल्ड ड्रिंक, ग्लूकोज घोल और पेय पदार्थों से बचना चाहिए। इस दौरान विद्यार्थियों ने डायरिया में ओआरएस के प्रयोग के प्रति जन-जागरूकता फैलाने का वादा किया। अंत में नर्सिंग छात्रों ने नाटिका के माध्यम से डायरिया प्रबंधन के संबंध में मिथकों के बारे में बताया । कार्यशाला में 200 से अधिक विद्यार्थी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में डॉ. रिचा राठौरिया, डॉ रुचिरा सेठी, डॉ तबस्सुम यासमीन , डॉ शशि पांडे , डॉ साधना, डॉ दिव्या श्रीवास्तव , डॉ चंद्रभान, डॉ सीबीएस पटेल, डॉ उमेश, डॉ सरिता पांडे, डॉ विनोद कुमार, डॉ विनोद वर्मा, डॉ आशीष यादव, डॉ भारती यादव, डॉ बिट्टू, डॉ सच्चिदानंद, डॉ अचल, डॉ. अरविन्द पटेल, डॉ राजश्री, डॉ दीपक, डॉ अपूर्व, डॉ स्तुति, डॉ रिचा, डॉ शेफाली आनंद, डॉ राम आसरे, डॉ प्रतीक, सुशील, राजन, रवि ठाकुर, चंद्रमणि, विक्रम, आकाश आदि उपस्थित रहे। उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने इस कार्यशाला को तीन क्रेडिट घंटे दिए हैं।

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