Jaunpur news कर्बला पूरी दुनिया को कुर्बानी और इंसानियत का पैग़ाम देती है – डॉ. अबरार हुसैन

कर्बला पूरी दुनिया को कुर्बानी और इंसानियत का पैग़ाम देती है – डॉ. अबरार हुसैन
जौनपुर।
माहे मोहर्रम में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत की याद में मजलिसों और मातमी कार्यक्रमों का आयोजन पूरे श्रद्धा, अदब और परंपरा के साथ किया जा रहा है। इसी क्रम में मोहल्ला मखदूम शाह अडहन स्थित शेख नूरुल हसन मेमोरियल सोसायटी कार्यालय पर एक विशेष मजलिस का आयोजन किया गया।
मजलिस को संबोधित करते हुए ज़ाकिर-ए-अहलेबैत जनाब डॉ. अबरार हुसैन ने कहा कि “कर्बला सिर्फ एक युद्ध का नाम नहीं है, बल्कि यह इंसानियत, कुर्बानी और सत्य के लिए डटे रहने का प्रतीक है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अन्याय के सामने झुकने से इनकार करते हुए अपने परिवार और साथियों के साथ शहादत को गले लगाया।”
उन्होंने कहा कि भारत में हैदराबाद, लखनऊ और उसके बाद जौनपुर वह स्थान हैं जहाँ मोहर्रम को परंपरागत, अनुशासित और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। पुरुषों और महिलाओं दोनों की मजलिसों में मर्सिया, नौहा और मातमी जुलूसों के ज़रिए लोग इमाम हुसैन को याद करते हैं। हर धर्म और संप्रदाय के लोग अपनी-अपनी आस्था और तरीके से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
डॉ. हुसैन ने कर्बला की घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा, “जब यज़ीद ने इमाम हुसैन से बैअत (समर्पण) करने को कहा, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया – ‘तेरे जैसे की बैअत मेरे जैसा नहीं कर सकता।’ इसके बाद वे अपने परिवार और साथियों के साथ मदीने से निकल पड़े। रास्ते में जब यज़ीद की सेना का पानी खत्म हो गया, तो इमाम हुसैन ने अपने काफिले का पानी उन्हें पिलाया, यहाँ तक कि उनके जानवरों को भी पानी पिलाया। इसके बावजूद उन्हें कर्बला में रोककर तीन दिन भूखा-प्यासा रख कर शहीद कर दिया गया।”
मजलिस में अंजुमन क़ासिमिया चहारसू की ओर से नईम हैदर मुन्ने के नेतृत्व में नौहा और मातम पेश किया गया। कार्यक्रम के अंत में मजलिस के आयोजक समाजसेवी अली मंजर डेज़ी ने सभी उपस्थित श्रद्धालुओं को तबर्रुक वितरित किया।