Jaunpur news परिषदीय विद्यालयों का मर्जर : शिक्षा के निजीकरण की ओर पहला कदम

परिषदीय विद्यालयों का मर्जर : शिक्षा के निजीकरण की ओर पहला कदम
इंदु प्रकाश यादव, जिला महामंत्री, अटेवा जौनपुर
परिषदीय स्कूलों का मर्जर – शिक्षा में असमानता की शुरुआत
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा छात्र संख्या कम होने के आधार पर लगभग 27,764 प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों को आपस में विलय (संविलयन) करने की योजना शिक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह कदम खासकर ग्रामीण, वंचित और निर्धन तबकों के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को कमजोर करता है।
1. ग्रामीण और गरीब बच्चों से छीना जा रहा है शिक्षा का हक़
- यह योजना विशेष रूप से उन क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है, जहां पहले से ही संसाधनों की भारी कमी है।
- पूर्वांचल के गांवों में मर्जर के बाद बच्चे दूरस्थ विद्यालयों तक पहुंचने के लिए मजबूर होंगे, जिससे स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में बढ़ोतरी तय है।
- बढ़ी दूरी विशेषकर किशोरी छात्राओं के लिए सुरक्षा और सामाजिक बाधाओं की वजह से एक बड़ी रुकावट बन सकती है।
2. आरटीई (नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा अधिकार) कानून का खुला उल्लंघन
- आरटीई अधिनियम के अनुसार हर 1 किमी पर प्राथमिक और 3 किमी पर उच्च प्राथमिक विद्यालय होना अनिवार्य है।
- मर्जर नीति इन मानकों की अवहेलना करती है, जिससे शिक्षा तक समान पहुंच का मूलभूत अधिकार बाधित हो रहा है।
3. निजीकरण की ओर बढ़ता कदम
- मर्जर की आड़ में सरकार सरकारी विद्यालयों को कमजोर कर, धीरे-धीरे निजी संस्थानों को बढ़ावा दे रही है।
- इससे शिक्षा महंगी होगी, अवसर सीमित होंगे, और अंततः शिक्षा का बाज़ारीकरण हो जाएगा।
4. शिक्षकों और अभिभावकों में असंतोष, विरोध का स्वर तेज
- संविलयन के चलते शिक्षकों की नियुक्ति, स्थानांतरण और कार्यभार प्रभावित होगा।
- गांवों के लोगों में असंतोष गहराता जा रहा है, जो धीरे-धीरे जन आंदोलन का रूप ले सकता है।
5. विकल्प मर्जर नहीं, सुधार है
समस्या | समाधान |
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कम छात्र संख्या | मूलभूत सुविधाएं, शिक्षक नियुक्ति और सामुदायिक जागरूकता |
शिक्षा की गिरती गुणवत्ता | निरंतर प्रशिक्षण, डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता, नियमित मूल्यांकन |
सामाजिक दूरी और अलगाव | स्थानीय पंचायतों और समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाए |
आरटीई की अवहेलना | सरकारी प्राथमिकता और निगरानी तंत्र को मज़बूत किया जाए |
निष्कर्ष
परिषदीय विद्यालयों का मर्जर नीति न तो शिक्षा को सशक्त बना रही है और न ही समानता को बढ़ावा दे रही है। यह कदम सरकारी स्कूलों को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर कर, निजी क्षेत्र और एनजीओ आधारित मॉडल की ओर धकेल रहा है, जिससे सबसे अधिक नुकसान समाज के सबसे कमजोर वर्गों को हो रहा है।
हमारी मांगें
- मर्जर की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।
- सरकारी विद्यालयों में संसाधन, शिक्षक और गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम तत्काल शुरू किए जाएं।
- प्रत्येक बच्चे को आरटीई और संविधान के अनुसार समान व सुलभ शिक्षा की गारंटी दी जाए।
शिक्षा अधिकार है, सुविधा नहीं – इसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।