November 22, 2024

बार काउंसिल आफ इंडिया के नियम के तहत वकालत के साथ विधिक खबरें देना है विधिक जागरूकता

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बार काउंसिल आफ इंडिया के नियम के तहत वकालत के साथ विधिक खबरें देना है विधिक जागरूकता

निर्भया कांड,हाथरस कांड में पैरवी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील एवं उप्र बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष ने व्यक्त किए विचार

सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में पहले भी उठा था मामला और हो चुका है समाधान

विधिक शब्दावली व कानूनी पेचीदगी को देखते हुए अदालत की खबरें अधिवक्ता ही दे पायेगा सामान्य पत्रकार नहीं

जौनपुर -हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट –
अधिवक्ता वकालत के साथ-साथ कोर्ट व कानून से जुड़े विषयों पर खबर दे सकता है।बार काउंसिल आफ इंडिया के नियम 51 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि एक अधिवक्ता पारिश्रमिक लेकर संसदीय विधेयकों की समीक्षा कर सकता है,वेतन लेकर कानूनी पाठ्य पुस्तकों का संपादन कर सकता है,समाचार पत्रों के लिए प्रेस समीक्षा कर सकता है,विद्यार्थियों को कानूनी परीक्षा के लिए प्रशिक्षित कर सकता है,प्रश्न पत्र तैयार कर सकता है और उनकी जांच कर सकता है तथा विज्ञापन और पूर्ण कालिक रोजगार के विरुद्ध नियमों के अधीन रहते हुए प्रसारण पत्रकारिता में संलग्न हो सकता है,कानूनी और गैर कानूनी दोनों विषयों पर व्याख्यान दे सकता है और पढ़ा सकता है।कार्यरत अधिवक्ता समाचार पत्र में विधिक खबरों हेतु अपनी सेवाएं देने के लिए पूर्ण रूप से अधिकृत है।
Section 51 in Bar Council Of India Rules

  1. An Advocate may review Parliamentary Bills for a remuneration, edit legal text books at a salary, do press-vetting for newspapers, coach pupils for legal examination, set and examine question papers; and, subject to the rules against advertising and full- time employment, engage in broadcasting journalism, lecturing and teaching subjects, both legal and non-legal.

निर्भया कांड,हाथरस कांड व देश के अन्य महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी करने वाले रहे विधि रत्न से सम्मानित सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ एपी सिंह ने बताया कि सांसद बृजभूषण शरण सिंह से जुड़े अवमानना के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक बार फिर से बार काउंसिल के नियमों को उठाते हुए वकीलों को पत्रकारिता पेशे को साथ-साथ न करने पर बार कौंसिल ऑफ इंडिया से स्पष्टीकरण मांगा है।बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया के नियम 51 में स्पष्ट तौर पर किसी भी कार्यरत अधिवक्ता को पत्रकारिता के साथ-साथ शिक्षण क्षेत्र में कार्य करने की अनुमति दी गई है और इन्हीं नियमों के तहत सर्वोच्च न्यायालय के अनेक वरिष्ठ अधिवक्ता राजनीतिक दलों के प्रवक्ता बनकर समाचार पत्र और टीवी चैनल पर दिखाई देते हैं । यही नहीं अनेक वरिष्ठ अधिवक्तागण समाचार पत्र में नियमित रूप से अपने लेख प्रकाशित करते हैं । अधिवक्ता लीगल अवेयरनेस के लिए कार्य करता है जिसमें कोर्ट की खबरें देना भी शामिल है।पुराने व नए कानून के बारे में लोगों को खबरों के माध्यम से ही जागरूक किया जा सकता है।वैसे भी न्यायालय की खबरों और विधिक शब्दावलियों की जानकारी केवल अधिवक्ता को ही रहती है। कानूनी पेचीदगी को देखते हुए सामान्य पत्रकार अगर कोर्ट की खबरें लिखने लगेगा तो अर्थ का अनर्थ होने की संभावना रहेगी और आए दिन विवाद पैदा होगा। इसीलिए बार काउंसिल आफ इंडिया के नियम 51 में यह स्पष्ट कर दिया गया है।

बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अजय शुक्ला ने बताया कि बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा नियम 51 में स्पष्ट रूप से पत्रकार शब्द का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कार्यरत अधिवक्ता पत्रकार के रूप में और समाचार पत्र में विधिक खबरों हेतु अपनी सेवाएं देने के लिए पूर्ण रूप से अधिकृत है। बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश द्वारा इसी तरह के मामले में कार्यरत अधिवक्ता को पत्रकार के रूप में कार्य किए जाने की शिकायत को समाप्त करते हुए आदेश पारित किया गया।वहीं माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ द्वारा भी एक मामले की सुनवाई करते समय सर्वोच्च न्ययालय की तर्ज पर पत्रकार और वकील के रूप में कार्यरत याचिककर्ता द्वारा स्पष्टीकरण प्राप्त करने के उपरांत याचिका की सुनवाई करते हुए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह बिंदु पर रखा जाएगा। कहा कि आए दिन जो सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट व जिला अदालतों के निर्णय आते हैं और हम लोग समाचार पत्रों में पढ़ते हैं।उन विधिक खबरों को कोई सामान्य पत्रकार जो एल एल बी नहीं किया है, कत्तई लिख सकता है? एक अधिवक्ता ही विधिक खबर दे सकता है।

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