हिन्दू इण्टर कालेज संस्था भी आन्दोलन में लिया था बढ़ चढ़ कर हिस्सा

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नीभापुर में रेल की पटरी उखाड़ने के बाद क्रांतिकारियों ने लूट ली थी ट्रेन

सतहरिया -मुंगराबादशाहपुर  10 अगस्त 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों का जन सैलाब सड़क पर निकल पड़ा था| इंकलाब जिंदाबाद और अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे चारों ओर लगने लगे|मुंगराबादशाहपुर इलाके के नौजवानों,किसानों,छात्रों, महिलाएं व स्कूल संस्था ने भी घर परिवार की परवाह किए बिना ही स्वतंत्रता आन्दोलन की आग में कूद पड़े थे|आजादी के दिवाने ने तिरंगा झंडा के तले संकल्प लिया था कि जब तक हम भारत माता की पैरों में दासता की पड़ी बेड़ी से मुक्त नहीं कराते है,तब तक हम अंग्रेजों को न चैन से सोने और न चैन से खाने देंगे| बद्रीनाथ तिवारी, गोपीनाथ,गौरी शंकर तीनों सगे भाई रूप नारायण, राम निरंजन,बाबूराम तिवारी, लालमणि रामयज्ञ,दुर्गा प्रसाद तिवारी,मुनी यादव,दुखी राम तिवारी नीभापुर, रामखेलावन मिश्र,कबीरपुर व अजायब सिंह काछीडींह नड़ार आदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपने साथियों के साथ नीभापुर स्टेशन को लूट कर उसे आग के हवाले कर दिया था और रेलवे लाइन को उखाड़ दिया|जूट और नारियल से भरे मालगाड़ी के तीन डिब्बे लूट लिया था| जिसमें इन सभी क्रांतिकारियों को तीन सितंबर 1942 को जौनपुर दिवानी में न्याधीश इफ्तेखार खां की कोर्ट से दो वर्ष की कारावास व साठ रूपए जुर्माना की सजा सुनाई गई थी|जुर्माना की रकम न अदा करने पर उन्हे छह माह की अतरिक्त सजा सुनाई गई|जेल कोड़े से पिटाई के चलते रामयज्ञ तिवारी की मौत हो गई थी|क्रांतिकारियों को जेल भेजने के बाद अंग्रेजों ने उनके घरों में लूटपाट करने के बाद आग लगा दी थी|इसी क्रम में हिन्दू इण्टर कालेज मुंगराबादशाहपुर के संस्थापक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यमुना प्रसाद गुप्त के नेतृत्व में सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में छात्रों सहित सभी शिक्षक कूद पड़े थे|स्कूल में सभा कर अग्रेजों का जबरदस्त विरोध किया गया था|अंग्रेजों का सामना करने के लिए तरह तरह की योजना बनाई गई थी| इसके कारण संस्था को भारी नुकसान के साथ अंग्रेजों का कोप भाजन बनना पड़ा|जिसके चलते स्कूल की मान्यता छिन गई|छात्रों की संख्या घटकर 50 हो गई|संस्था का जड़ बहुत मजबूत होने तथा संस्थापक के अनवरत प्रयास से संस्था पुनर्जीवित हो उठी|स्वदेशानुराग की अदम्य भावना तथा सदियों से शोषित दासता की अर्गला से मुक्त होने की बलवती कामना से सन 1942 में अपने पूरे जोश खरोश के साथ संस्था द्वारा अग्रेजों का जबरदस्त विरोध किया था|जो इतिहास पन्नों में अविस्मरणीय हो गया|

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