September 19, 2024

ईश्वर से पहले उसकी संतानों को खुश करना जरूरी: मानिक चंद तिवारी

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शाहगंज ।संत निरंकारी मिशन जोन नंबर 63 जौनपुर अंतर्गत शाखा पट्टी नरेंद्रपुर में रविवार को साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग में उपस्थित निरंकारी संतो- महापुरुषों को संबोधित करते हुए जोनल इंचार्ज महात्मा मानिकचंद तिवारी जी ने कहा कि परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को जानकर भक्ति करने से ही मुक्ति मिल सकती है। आज इंसान ईश्वर द्वारा बनाई गई मूर्ति को पूजने के बजाय कृत्रिम प्रतिमा को शीश झुका रहा है और खुदा के बनाए बंदों से नफरत कर रहा है जो इसे हरगिज पसंद नहीं है। यदि हम सचमुच भगवान को खुश करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें उसकी संतानों को खुश करना होगा जो प्रेम से ही संभव है। जोनल इंचार्ज ने कहा कि आज समय की सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज सच्ची भक्ति की शुरुआत घर से करने की बात करती हैं क्योंकि यदि घर में प्रेम होगा तभी हम बाहर प्रेम का वातावरण स्थापित कर सकते हैं।उन्होंने माता शबरी की भक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि यदि सच्चे हृदय से हम प्रतीक्षा करें तो भगवान साकार रूप में किसी न किसी दिन जरूर मिलेंगे। उन्होंने द्वैत – अद्वैत के दर्शन का भेद समझाते हुए बताया कि ब्रह्म एक है और द्वैत( माया) उसकी रचना है। दोनों एक म्यान में दो तलवार के रूप में होते हैं क्योंकि जहां ज्ञान है वहां अज्ञान नहीं है ,जहां प्रकाश है वहां अंधकार नहीं ठहर सकता। ठीक उसी प्रकार से जहां निराकार है वहां संसार नहीं है। उन्होंने बताया कि जब ब्रह्म की प्राप्ति हो जाती है सारे भ्रम समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि संतों के जीवन में जीना और मरना होता ही नहीं।जिसने ईश्वर को जान लिया और काम, क्रोध, मोह लोभ ,अहंकार को मार दिया, इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया तो आध्यात्मिक दृष्टि से उसने अपने आप को मार दिया। अध्यात्म में यदि एक बार जो मर गया तो फिर उसका जन्म मरण का बंधन समाप्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसा ब्रह्म ज्ञान से ही संभव हो सकता है।

महात्मा विद्यावती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञानी संतों की कृपा से ही परमात्मा का सानिध्य प्राप्त होता है।महात्मा राजेश सिंह ने कहा कि सतगुरु की कृपा से सत्संग मिलता है।उन्होंने ज्ञान को अमल में लाने की बात कही। गुरु के चरणों में समर्पित हो जाना ही वास्तविक भक्ति है।महात्मा शीतला प्रसाद ने कहा परमात्मा स्थाई है बाकी सारी सृष्टि परिवर्तनशील है।संतजनों डा. शैल कुमार प्रजापति,रामनाथ ,रमापति ,जन्तीरा, विनोद , मंगरु,उषा आदि लोगों ने भी अपने गीत, भजन और विचार व्यक्त किए।संचालन महात्मा कमलेश ने किया। इस अवसर पर बाबूराम प्रजापति, रामपकाश, विक्रमा,रामधनी,शशिबाला,राजू,आत्माराम आदि उपस्थित रहे।

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