October 19, 2024

ईश्वर की प्राप्ति के लिए मिला मानव शरीर:जितेंद्र त्रिपाठी जी महाराज

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ईश्वर की प्राप्ति के लिए मिला मानव शरीर:जितेंद्र त्रिपाठी जी महाराज

भक्त ध्रुव,प्रह्लाद और अजामिल की कथा का प्रसंग सुनकर श्रोता भाव विभोर

श्रीमद् भागवत सप्ताह कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन प्रवाहित हुई ज्ञान- भक्ति एवं वैराग्य की गंगा

शाहगंज ।विकासखंड क्षेत्र खुटहन अंतर्गत जगदीशपुर गांव में मुख्य यजमान रामचंद्र मिश्र (सचिव एवं पूर्व प्रधान )के निज निवास पर साप्ताहिक संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया।भागवत कथा के तीसरे दिन संगीतमयी कथा व्यास आचार्य जितेंद्र त्रिपाठी जी महाराज के मुखारविंद से ज्ञान ,भक्ति एवं वैराग्य की गंगा प्रवाहित हुई। आचार्य जितेंद्र त्रिपाठी जी महाराज ने सती का जन्म, विवाह तथा दक्ष-शिव-वैमनस्य प्रसंग का मार्मिक चित्रण करते हुए बताया कि प्रजापतियों के एक यज्ञ में दक्ष के पधारने पर सभी देवताओं ने उठकर उनका सम्मान किया, परंतु ब्रह्मा जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रहे। शिव को अपना जामाता अर्थात् पुत्र समान होने के कारण उनके द्वारा खड़े होकर आदर नहीं दिये जाने से दक्ष ने अपना अपमान महसूस किया और उन्होंने शिव के प्रति कटूक्तियों का प्रयोग करते हुए अब से उन्हें यज्ञ में देवताओं के साथ भाग न मिलने का शाप दे दिया। नन्दी ने भगवान शिव का अपमान सहन नहीं किया और उन्होंने भी दक्ष को श्राप दिया कि एक दिन उनके धड़ पर उनका नहीं एक बकरे का शीश होगा।

उक्त घटना के बाद प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया।जिसमें उन्होंने अपने जामाता शिव और पुत्री सती को यज्ञ में आने हेतु निमंत्रित नहीं किया। शिवजी के समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाये ही चली गयी। यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शिवजी का घोर निरादर किया। अपमान न सह पाने के कारण सती ने तत्काल यज्ञस्थल में ही योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया। सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान् शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। वीरभद्र ने पूर्व में भगवान् शिव का विरोध तथा उपहास करने वाले देवताओं तथा ऋषियों को यथायोग्य दण्ड देते हुए दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला। बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान् शिव ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर उसके यज्ञ को सम्पन्न करवाया। उन्होंने कथा का सार समझाते हुए कहा कि बिना बुलाए कहीं भी जाना नहीं चाहिए और पति के आदर सम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए।

उन्होंने भक्त प्रहलाद के प्रसंग के सार सुनाते हुए बताया कि ईश्वर अपने भक्तों के साथ अन्याय और अत्याचार बिल्कुल सहन नहीं कर सकते।अपने भक्तों,साधु- संतों की रक्षा के लिए उन्हें चाहे जिस रूप को धारण करना हो,चाहे जिस परिस्थिति में अवतार लेना पड़े तो भक्तों के लिए सब कुछ करते हैं। यहां तक कि विधाता द्वारा बनाये गए प्राकृतिक विधान को भी बदल देते हैं। उन्होंने भगवान नरसिंह के रूप को इसका ज्वलंत उदाहरण बताया।उन्होंने मानव शरीर को 84 लाख योनियों में सबसे महत्वपूर्ण बताया।उन्होंने कहा कि मानव शरीर ईश्वर की प्राप्ति के लिए मिला है। ईश्वर की भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति करके मनुष्य इसी मानव शरीर में मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।भक्त ध्रुव, प्रहलाद और अजामिल की कथा का प्रसंग सुनकर श्रोता भाव विभोर हो उठे।इस अवसर पर ओम प्रकाश मिश्र,बचई प्रसाद मिश्र,महेंद्र प्रसाद मिश्र ,राजेंद्र प्रसाद यादव,इंद्र प्रकाश रजक, सत्यनारायण सोनी ,ईशनारायण मिश्र सहित सैकडों गणमान्य नागरिक एवं क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।

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